शिवजी की पूजा में सफेद और लाल पुष्प के अलावा बेलपत्र, भांग, धतूरा, दूर्वा, अष्टगंध, धूप और दीपक रखें। इन सभी वस्तुओं से पूजा करने के बाद व्रत का संकल्प लें। आप चाहें तो निराहार व्रत रहें और समार्थ्य नहीं है तो फलाहार करके भी व्रत रहा जा सकता है।
इसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही शिवजी का दूध और गंगाजल के साथ अभिषेक करें।
ध्यान रखें की इस दिन पूजा करते समय कोकिला व्रत कथा का पाठ जरूर करें।
कोकिला व्रत क्या है? पार्वती जी ने कैसे पाया शिव जी को? जानिए विधि, महत्व और कथा
ஶ்ரீ லம்போ³த³ர ஸ்தோத்ரம் (க்ரோதா⁴ஸுர க்ருதம்)
कोकिला व्रत से जुड़ी कथा का संबंध भगवान शिव एवं माता सती से जुड़ा है। माता सती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक कठोर तपस्या को करके उन्हें पाया था। कोकिला व्रत कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार read more देवी सती ने भगवान को अपने जीवन साथी के रुप में पाया। इस व्रत का प्रारम्भ माता पार्वती के पूर्व जन्म अर्थात सती रुप से है।
व्रत के दौरान महिलाएं उपवास रखती हैं और शिव जी आरती और माता पार्वती की पूजा करती हैं।
देवी सती का जन्म राजा दक्ष की बेटी के रुप में होता है। राजा दक्ष को भगवान शिव अत्यधिक अप्रिय थे। राजा दक्ष एक बार यज्ञ का आयोजन करते हैं। इस यज्ञ में वह सभी लोगों को आमंत्रित करते हैं ब्रह्मा, विष्णु व सभी देवी देवताओं को आमंत्रण मिलता है किंतु भगवान शिव को नहीं बुलाया जाता है।
यह व्रत अविवाहित महिलाओं का सौभाग्य बढ़ाता है।
फिर क्या था, भगवान शिव अर्धनारीश्वर से पूरे नारी-रूप बन गये। श्रीयमुना जी ने षोडश श्रृंगार कर दिया।..
संत अनंतकृष्ण बाबा जी के पास एक लड़का सत्संग सुनने के लिए आया करता था। संत से प्रभावित होकर बालक द्वारा दीक्षा के लिए प्रार्थना करने..
जब कृष्ण जी ने ये सुना तो भागते हुए आये और उन्होंने भी मोर को प्रेम से गले लगा लिया और बोले हे मोर, तू कहा से आया हैं।...
स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देकर दिन का आरंभ करें।
अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!
Comments on “The Greatest Guide To कोकिला-व्रत-कथा”